रविवार, 8 अप्रैल 2018

शुक्रवार, 26 मई 2017

रविवार, 15 नवंबर 2015

हिन्दुस्तान और उसका "सेकुलरिज्म"



हिन्दुस्तान के अन्दर "इंडिया का सेकुलरिज्म" हज़ार सालों के :मुस्लिम परस्ती और अँगरेज़ परस्ती" वाली गुलाम मानसिकता से उत्पन्न "हिन्दू विद्वेष और हिन्दू हीन भाव" से ग्रसित चरित्रहीन मानसिकता है जिसे गाँधी और नेहरु जैसे इतिहास पुरुषों द्वारा सिंचित, पुष्पित, पल्लवित किया गया और कांग्रेस इसी मानसिकता की उपज एवं पोषक है|

१९४७ के बाद इस " चरित्रहीन सेक्युलर मानसिकता " का सबसे ज्यादा उपयोग किया और लाभ उठाया कांग्रेसी और कम्युनिस्ट विचारधारा से प्रभावित और अंग्रेजी व्यवस्था के उत्तराधिकारी, नेहरु - गाँधी के पिछलग्गू मानसपुत्रों ने जो आजतक भारत को एक गरीब और चरित्रहीन देश बनाये रखने में कामयाब रहे -इसलिए कांग्रेसी मानसिकता शुद्ध देशद्रोह वाली मानसिकता का राजनितिक स्वरुप है और कांग्रेस का व्यवहार उसी मानसिकता के अनुरूप ही है खासकर तब जब मोदीजी केन्द्रीय सत्ता का सफलता पूर्वक संचालन कर देश को आर्थिक - राजनैतिक महाशक्ति बनाने की ओर अग्रसर है |

सोनिया-राहुल और अन्य कांग्रेसी मोदीजी के प्रति घृणा में इतना मानसिक रूप से विचलित और भयभीत हो चुके है की अब उन्हें पाकिस्तान और इस्लामी आतंकवादी अपना दोस्त लगता है तथा भारत की सरकार और भारतीय जनता इन्हें अपना दुश्मन नजर आती है |

कांग्रेसी+सेकुलर इस देश से प्यार नहीं कर सकता जिसका नेतृत्व मोदी करेगा ( Congress+secular will hate a country that is represented by MODI  ) मतलब ये देश सेक्युलर और कांग्रेसी का है ही नहींजो कल तक मोदी से नफरत करते थे अब धीरे धीरे देश की सभ्यता संस्कृति और देश से ही नफरत करने लगे है जबकि देश की सभ्यता संस्कृति से प्यार तो उन्हें पहले भी नहीं था--

आप किसी भी कांग्रेसी प्रवक्ता का टीवी बहस में उनके व्यक्तव्यों को  सुनकर अपना सर पिट लेते है की क्या भारत को वो कभी भी अपना देश माना है की नहीं ? अभी भी कांग्रेसी सोनिया और राहुल एक ओब्सेसन में जी रहे है जहाँ भारत उनकी जागीर थी और मन माफिक भारत के इतिहास की ब्याख्या उनका जन्मसिद्ध अधिकार है .. एक महान इतिहासकार का विचार ----

भारतीय इतिहास के साथ इस खिलवाड़ के मुख्य दोषी वे वामपंथी इतिहासकार हैं, जिन्होंने स्वतंत्रता के बाद नेहरू की सहमति से प्राचीन हिन्दू गौरव को उजागिर करने वाले इतिहास को या तो काला कर दिया या धुँधला कर दिया और इस गौरव को कम करने वाले इतिहास-खंडों को प्रमुखता से प्रचारित किया, जो उनकी तथाकथित धर्मनिरपेक्षता के खाँचे में फिट बैठते थे।

ये तथाकथित इतिहासकार अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय की उपज थे, जिन्होंने नूरुल हसन और इरफान हबीब की अगुआई में इस प्रकार इतिहास को विकृत किया।भारतीय इतिहास कांग्रेस पर लम्बे समय तक इनका कब्जा रहा, जिसके कारण इनके द्वारा लिखा या गढ़ा गया अधूरा और भ्रामक इतिहास ही आधिकारिक तौर पर भारत की नयी पीढ़ी को पढ़ाया जाता रहा।वे देश के नौनिहालों को यह झूठा ज्ञान दिलाने में सफल रहे कि भारत का सारा इतिहास केवल पराजयों और गुलामी का इतिहास है और यह कि भारत का सबसे अच्छा समय केवल तब था जब देश पर मुगल बादशाहों का शासन था। तथ्यों को तोड़-मरोड़कर ही नहीं नये तथ्योंको गढ़कर भी वे यह सिद्ध करना चाहते थे कि भारत में जो भी गौरवशाली है वह मुगल बादशाहों द्वारा दिया गया है और उनके विरुद्ध संघर्ष करने वाले महाराणा प्रताप, शिवाजी आदि पथभ्रष्ट थे।




इनकी एकांगी इतिहास दृष्टि इतनी अधिक मूर्खतापूर्ण थी कि वे आज तक महावीर, बुद्ध, अशोक, चन्द्रगुप्त, चाणक्य आदि के काल का सही-सही निर्धारण नहीं कर सके हैं। 

 

 

भारत का उच्चतम न्यायलय

अभी हाल के भारत के सुप्रीम कोर्ट के एक निर्णय ने जिसमे जजों की नियुक्ति की वर्तमान कोल्जियम व्यवस्था की जगह एक न्यायिक आयोग बनाने की पारदर्शी व्यवस्था को निरस्त कर देना, भारत के प्रजातान्त्रिक व्यवस्था के समक्ष एक व्यवहारिक विचारणीय प्रश्न खड़ा कर दिया है - "क्या भारत की न्यायपालिका भारत की प्रजातान्त्रिक संरचना से भी ऊपर एक स्वयंसार्वभौमिक सर्वसमर्थ संस्था है ?"

भारत के लोकतंत्र का मानबिंदु, संविधान आधारित संसद है जिसे और सिर्फ उसे ही कानून बनाने का क़ानूनी अधिकार है - लेकिन भारत के केन्द्रीय सत्ता में नेहरु के अवतरण या यों कहे मोहनदास करमचंद गाँधी द्वारा अंग्रेजी व्यवस्था के उत्तराधिकार के पोषक के रूप में नेहरु का चयन - शालीनता, सक्षमता और दूरदर्शी ज्ञान के अभाव से अधिक भारत के लिए श्राप साबित हुआ | एक मित्र के ब्लॉग से निम्न पद आपके अवलोकनार्थ एवं विचारार्थ प्रस्तुत है ......



प्रथम प्रधान मंत्री ही किसी के विशेष प्रिय-पात्र होने के कारन पद पा गए फिर उन्होंने अपने चहेतों को महत्वपूर्ण स्थान पर रखने की राजनितिक संस्कृति की नीब डाल दी धीरे धीरे यह घातक रोग राज्यतंत्र के हर अंग में फ़ैल गया योग्य के बदले प्रिय-पात्र हमारी राजनीती का दिश-निर्देशक तत्व बन गया प्रिय व्यक्ति जाती या समुदाय को प्रश्रय इसी राजनितिक संस्कृति को सेकुलरवाद,जनवाद आदि कहा गया 


हमारे देश में चरित्रवान प्रतिभाओं वाले लोगों की कमी नहीं है समस्या है इन्हें ढूंडकर उचित स्थान देने की ठीक जगह पर ठीक व्यक्ति रहे इसके लिए स्वतंत्र भारत में आरंभ से ही कोई उपाय नहीं किया गया बल्कि हर महत्वपूर्ण पद को लाभ लेने देने का पुरस्कार मात्र मान लिया गया 

यह सारांश है भारतीय राष्ट्रिय प्रजातान्त्रिक सरकार संचालन व्यवस्था का और इसी से पूरी तरह प्रभावित हमारी न्यायिक प्रणाली भी रही है जिसमे अपने को सर्वोच्च समझने और उपकृत होने तथा करने की संस्कृति इस कदर हावी हो चूकी है की करोड़ों मुकदमे कई दशकों से न्यायपालिका में लंबित पड़े है और अपने अन्दर सुधार की हर प्रक्रिया को न्यायपालिका अपने ऊपर हमला समझती है और " न्यायपालिका की स्वतंत्रता " का हनन का तर्क देती है -- मै "न्यायपालिका की निष्पक्षता " की समझ रखता हूँ लेकिन ये " न्यायपालिका की स्वतंत्रता " समझ से परे है |


इसी न्यायपालिका की स्वतंत्रता ने संसद का सर्वमान्य कानून को रद्द कर संविधान को अपने निचे कर दिया और अब यह एक विचारणीय यक्ष प्रश्न बनकर लोकतंत्र को चिढ़ा रही है | आप " न्यायपालिका की स्वतंत्रता " और "न्यायपालिका की निष्पक्षता "के बीच चुनने का यक्ष कार्य करें

रविवार, 18 अक्तूबर 2015

नपुंसक धर्मनिरपेक्षता

भारत को कमजोर करता इंडियन सेकुलरिज्म
यह भारत का दुर्भाग्य था की १९४७ की तथाकथित आज़ादी के वक्त नेताजी सुभाष चन्द्र बोस जैसा सर्वमान्य सक्षम नेता तत्कालीन परिदृश्य से अदृश्य थे और बचे तत्कालीन सभी नेताओ में काबिल और सक्षम सरदार पटेल, सत्ता के प्रमुख दावेदार के तौर पर दरकिनार कर दिए जाने के बाद फिर भारत " अंग्रेजी इंडिया का उत्तराधिकार " ढोने के लिए अभिशप्त हो गया | जिसदिन के लिए १८८५ में एक अंग्रेज द्वारा अंग्रेजीदा लोगों के लिए एक क्लब की स्थापना की गयी थी और जिसका लक्ष्य था भारत को अंग्रेजीदां व्यवस्था का गुलाम बनाये रखना और १९४७ में अंग्रेजों ने इसे सफलता पूर्वक अंजाम दिया | आज उस क्लब को आप " कांग्रेस " के नाम से जानते है

भारत का दुर्भाग्य पिछले १०००-१२०० साल से पीछा नहीं छोड़ रहा है | मुस्लिम आक्रमणकारी ७०० ई. के आस-पास से भारत और यहाँ के धन-धान्य की गौरव गाथा सुनकर लुटेरे बनकर आक्रमण करते रहे और भारत के राज्यों के तत्कालीन शासक अलग-अलग तरीकों से उनका सामना करने की कोशिश करते रहे - मिश्रित सफलता - असफलता के साथ . ईस्वी १००० के बाद ये आक्रमण तेज और क्रूर होते गए | भारत अपनी गरिमा और गौरव साथ ही अपनी महान परंपरा तथा धरोहर की क्षति देखता रहा और सिसकता रहा

इस बड़े क्षति के पीछे के मूल तथ्य की खोज की जाय तो कहीं न कहीं हिन्दुओं के अन्दर एकता का आभाव - आपसी वैमनस्यता और भेद-भाव एक बड़े कारण के रूप में सामने आता है साथ ही कुछ हिन्दू राजाओं के द्वारा छुद्र स्वार्थ के लिए अपनी आत्मा बेच देना और देश द्रोही बनकर देश और माँ भारती को रौदने में विदेशी आक्रमणकारियों की मदद करना - हमारे इतिहास की घिनौनी सच्चाई से हम सब भिज्ञ है

आज के परिपेक्ष्य में भी ये सैकरों साल पुरानी घटना पूरी तरह समसामयिक  की तरह है - कही गहरे ये सभी कारण आज भी हमारे समाज में उसी तीब्रता से या कहें तो अधिक तीब्रता से मौजूद है | आज भी हिन्दुओं में मौजूद ऐसे तत्व हमारे देश के वजूद पर ही प्रश्न चिन्ह बनकर आम जनता का शोषण कर रहे है - १९४७ के तत्कालीन  अदूरदर्शी  नेतायों द्वारा स्वीकृत धर्म आधारित देश का वंटवारा समस्या के समाधान के वजाय कोढ़ / कैंसर बनकर भारत-भारतीयता - भारतीय सभ्यता और संस्कृति को अन्दर से समाप्त कर रहा है और भारत की जनता, जिसमे अधिक लोग देशभक्त है, इस दुर्दशा को देखने - झेलने के लिए अभिशप्त है और ये सब किया जा रहा है सेकुलरिज्म के नाम पर|

लेकिन इस निराशा भरी परिस्थिति में एक बड़ी आशा की किरण, २०१४ में भारतीय राजनितिक क्षितिज पर उभरकर सामने आई है | ये आशा की किरण है " नरेंद्र मोदी" जो विश्व में भारत माँ को गौरवमयी और गरिमापूर्ण स्थान दिलाने के लिए कटीबध्ध है और अब हम सब की जिम्मेदारी है इस ज्योत / किरण को बचाए रखना और अपनी भावी पीढ़ी के सुन्दर जीवन के लिए तन-मन-धन से इस लौं को आगे बढ़ाना |

आज बाहरी लुटेरे के स्थान पर देसी लुटेरे ७० साल से देश को लुटे रहे है और जब लुट के सम्राज्य पर अब रोक लगनी सुरु हुई हो तो उनका हाहाकार- चीत्कार रौद्र रूप में सामने आ रहा है और खतरनाक ढंग से देश के लिए खतरा पैदा कर रहा है लेकिन हमें अपने पुरे होशो-हवाश के साथ इस धर्म-अधर्म के युध्ध में अर्जुन रूपी मोदी का हौसलाअफजाई करते रहना है देश के लिए और धर्म के लिए - अंतिम विजय धर्म की ही होगी ये कभी नहीं भूलना है "सत्यमेव जयते" |