रविवार, 18 अक्तूबर 2015

नपुंसक धर्मनिरपेक्षता

भारत को कमजोर करता इंडियन सेकुलरिज्म
यह भारत का दुर्भाग्य था की १९४७ की तथाकथित आज़ादी के वक्त नेताजी सुभाष चन्द्र बोस जैसा सर्वमान्य सक्षम नेता तत्कालीन परिदृश्य से अदृश्य थे और बचे तत्कालीन सभी नेताओ में काबिल और सक्षम सरदार पटेल, सत्ता के प्रमुख दावेदार के तौर पर दरकिनार कर दिए जाने के बाद फिर भारत " अंग्रेजी इंडिया का उत्तराधिकार " ढोने के लिए अभिशप्त हो गया | जिसदिन के लिए १८८५ में एक अंग्रेज द्वारा अंग्रेजीदा लोगों के लिए एक क्लब की स्थापना की गयी थी और जिसका लक्ष्य था भारत को अंग्रेजीदां व्यवस्था का गुलाम बनाये रखना और १९४७ में अंग्रेजों ने इसे सफलता पूर्वक अंजाम दिया | आज उस क्लब को आप " कांग्रेस " के नाम से जानते है

भारत का दुर्भाग्य पिछले १०००-१२०० साल से पीछा नहीं छोड़ रहा है | मुस्लिम आक्रमणकारी ७०० ई. के आस-पास से भारत और यहाँ के धन-धान्य की गौरव गाथा सुनकर लुटेरे बनकर आक्रमण करते रहे और भारत के राज्यों के तत्कालीन शासक अलग-अलग तरीकों से उनका सामना करने की कोशिश करते रहे - मिश्रित सफलता - असफलता के साथ . ईस्वी १००० के बाद ये आक्रमण तेज और क्रूर होते गए | भारत अपनी गरिमा और गौरव साथ ही अपनी महान परंपरा तथा धरोहर की क्षति देखता रहा और सिसकता रहा

इस बड़े क्षति के पीछे के मूल तथ्य की खोज की जाय तो कहीं न कहीं हिन्दुओं के अन्दर एकता का आभाव - आपसी वैमनस्यता और भेद-भाव एक बड़े कारण के रूप में सामने आता है साथ ही कुछ हिन्दू राजाओं के द्वारा छुद्र स्वार्थ के लिए अपनी आत्मा बेच देना और देश द्रोही बनकर देश और माँ भारती को रौदने में विदेशी आक्रमणकारियों की मदद करना - हमारे इतिहास की घिनौनी सच्चाई से हम सब भिज्ञ है

आज के परिपेक्ष्य में भी ये सैकरों साल पुरानी घटना पूरी तरह समसामयिक  की तरह है - कही गहरे ये सभी कारण आज भी हमारे समाज में उसी तीब्रता से या कहें तो अधिक तीब्रता से मौजूद है | आज भी हिन्दुओं में मौजूद ऐसे तत्व हमारे देश के वजूद पर ही प्रश्न चिन्ह बनकर आम जनता का शोषण कर रहे है - १९४७ के तत्कालीन  अदूरदर्शी  नेतायों द्वारा स्वीकृत धर्म आधारित देश का वंटवारा समस्या के समाधान के वजाय कोढ़ / कैंसर बनकर भारत-भारतीयता - भारतीय सभ्यता और संस्कृति को अन्दर से समाप्त कर रहा है और भारत की जनता, जिसमे अधिक लोग देशभक्त है, इस दुर्दशा को देखने - झेलने के लिए अभिशप्त है और ये सब किया जा रहा है सेकुलरिज्म के नाम पर|

लेकिन इस निराशा भरी परिस्थिति में एक बड़ी आशा की किरण, २०१४ में भारतीय राजनितिक क्षितिज पर उभरकर सामने आई है | ये आशा की किरण है " नरेंद्र मोदी" जो विश्व में भारत माँ को गौरवमयी और गरिमापूर्ण स्थान दिलाने के लिए कटीबध्ध है और अब हम सब की जिम्मेदारी है इस ज्योत / किरण को बचाए रखना और अपनी भावी पीढ़ी के सुन्दर जीवन के लिए तन-मन-धन से इस लौं को आगे बढ़ाना |

आज बाहरी लुटेरे के स्थान पर देसी लुटेरे ७० साल से देश को लुटे रहे है और जब लुट के सम्राज्य पर अब रोक लगनी सुरु हुई हो तो उनका हाहाकार- चीत्कार रौद्र रूप में सामने आ रहा है और खतरनाक ढंग से देश के लिए खतरा पैदा कर रहा है लेकिन हमें अपने पुरे होशो-हवाश के साथ इस धर्म-अधर्म के युध्ध में अर्जुन रूपी मोदी का हौसलाअफजाई करते रहना है देश के लिए और धर्म के लिए - अंतिम विजय धर्म की ही होगी ये कभी नहीं भूलना है "सत्यमेव जयते" |

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें